माँ की याद में
गदरवाड़ा की गलियों में अब भी तेरी महक आती है,
दमरुघाटी का मेला तेरी यादों को पास बुलाती है।
कभी तेरी हँसी गूंजती थी इन राहों में,
अब बस खामोशियाँ कदमों से लिपट जाती हैं।
मेले में रंग-बिरंगे खिलौने बुलाते हैं,
पर वो नन्हे हाथ अब किसे दिखाते हैं?
तेरी ऊँगली पकड़कर जो दुनिया देखी थी,
अब बिना तेरे हर मंजर अधूरा सा लगता है।
तेरी गोद में जो सुकून था माँ,
वो अब किसी कोने में भी नहीं मिलता माँ।
तू थी तो हर दर्द छोटा सा लगता था,
अब तो खुशी भी आँसुओं में घुलती जाती है।
काश कोई राह हो जो तुझ तक ले जाए,
तेरी गोद में सिर रखूँ और सब भूल जाएँ।
पर तेरी ममता की छाँव तो अब यादों में है,
और तेरा बेटा बस तन्हा खड़ा इस मेले में है। 💔
— तेरी याद में, माँ ❤️
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